बाबा कोटेश्वरनाथ मंदिर पांचवीं शताब्दी का मंदिर है
बाबा कोटेश्वरनाथ मंदिर गांव मेन, बेलागंज प्रखंड जिला गया में स्थित है। यह मंदिर गया में मोरहर और दरघा नदी के संगम पर स्थित है। बाबा कोटेश्वरनाथ भगवान शिवजी के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। माना जाता है कि कोटेश्वरनाथ मंदिर 5 वीं शताब्दी ईस्वी के आसपास बनाया गया था। सर्वे ऑफ इंडिया का भी कहना है, कि कोटेश्वरनाथ धाम का शिवमंदिर पांचवीं शताब्दी का मंदिर है। कोटेश्वरनाथ मंदिर का गर्भ गृह लाल पत्थर के एक टुकड़े में बना हुआ है और इसके भीतर द्वापर युग में निर्मित 1008 लघु शिवलिंग से समाहित एक बड़े आकार के शिवलिंग स्थापित किया गया था।

यह शिवलिंग की स्थापना सोनितपुर के राजा वाणासुर की पुत्री उषा ने की थी
यह शिवलिंग की स्थापना सोनितपुर के राजा ( जो अभी तेजपुर असम में है ) वाणासुर की पुत्री उषा ने की थी। एक दन्त कथा के अनुसार वाणासुर की पुत्री उषा भगवान श्री कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध से प्यार करती थी। लेकिन वाणासुर भगवान श्री कृष्ण को अपना दुश्मन मानता था। वाणासुर ने भगवान शिव की तपस्या किया था, जिससे भगवान शिव ने उसका तपस्या से प्रसन्न होकर उसे अजर अमर होने का वरदान दिये थे।
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उषा ने यहाँ 1008 लघु शिवलिंग से समाहित एक बड़े आकार के शिवलिंग स्थापित कि
उषा अनिरुद्ध से शादी की मनोकामना लिये भगवान शिव के पूजा करने हेतु मंदिर जाया करती थी। पूजा के दौरान भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें अपनी इच्छा पूरी करने के लिए एक हजार शिवलिंग स्थापित करने के लिए कहा। उसके बाद उषा ने यहाँ 1008 लघु शिवलिंग से समाहित एक बड़े आकार के शिवलिंग स्थापित किया। इसके परिणामस्वरूप भगवान शिव ने उषा को वरदान दिये जिसके परिणामस्वरूप उषा को भगवान कृष्ण के पोते अनिरुद्ध से शादी हुई।

शिव बाणासुर को बचाने के लिए श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र के सामने आकर खड़े हो गए
अनिरुद्ध ने उषा से विवाह कर लिया था, पर जब यह सूचना उषा के पिता बाणासुर को मिली, तो बाणासुर ने अनिरुद्ध को बंदी बना लिया। इसके बाद भगवान कृष्ण और बलराम बाणासुर से युद्ध करने पहुंचे, पर वरदान के अनुसार भगवान शिव बाणासुर को बचाने के लिए श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र के सामने आकर खड़े हो गए। भगवान शिव के अनुरोध पर श्रीकृष्ण ने बाणासुर को मृत्युदंड नहीं दिया।
बाणासुर ने अपने पापों के लिए भगवान से क्षमा मांगी। उसका अहंकार चूर-चूर हो गया। उसने कभी किसी पर अत्चाचार न करने का प्रण लिया और धूमधाम से अनिरुद्ध और उषा का विवाह कराया। जिनके साथ वह अपनी जिंदगी जीने के लिए चली गईं।
इस जगह को प्राचीन काल में “शिवनगर” के रूप में जाना जाता था
इस जगह को प्राचीन काल में “शिवनगर” के रूप में जाना जाता था। ऐसा मानना है, कि द्वापर युग के अंत में सहस्त्र शिवलिंगो की स्थापना की गई थी। यह एक धारणा है, कि इस स्थान की तीर्थयात्रा पर आने वाले व्यक्तियों की सभी इच्छाओं की पूर्ति हो जाती है।
हर दिन भक्तो का काफी भीड़ होता है
वैसे तो यहाँ हर दिन भक्तो का काफी भीड़ होता है, लेकिन हर साल सावन के महीने में यहाँ भक्तों का कई किलोमीटर तक मंदिर में पूजा करने के लिये भीड़ लग जाता है। आम तौर पर भगवान शिव के सभी पवित्र स्थानों पर पूरे वर्ष बड़ी संख्या में भक्त जाते हैं, लेकिन सावन के पवित्र महीने के दौरान यह संख्या काफी बढ़ जाता है। बाबा कोटेश्वरनाथ मंदिर मखदुमपुर, शकुरबाद-घेजन, टेकारी और बेला के साथ पक्की सड़क के माध्यम से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।

मंदिर के पास ही एक बेहद विशाल और प्राचीन पीपल का पेड़ है।
प्राचीन संपदा से भरपूर यह क्षेत्र अपने एक प्राचीन विशाल पीपल के वृक्ष के लिए भी काफी प्रसिद्द है, जिसकी लम्बी शाखाएं जमीन से जुड़कर आगे बढती जा रही हैं।
मंदिर के दरवाजों की चौखट तक पत्थरों से ही बनी हुई है।
इस पौराणिक मंदिर का जीर्णोद्धार 2007 में हुआ। कोटेश्वरनाथ मंदिर न्यास समिति इस मंदिर की देखरेख करती है। सरकार का पर्यटन विभाग भी इसमें सहयोग करता है। मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व की ओर है। मंदिर के मुख्य घटक एक गर्भगृह, एक स्तम्भ-मंडप (खंभेदार हॉल) और मुख्य मंडप हैं। यह पूरा मंदिर पत्थरों से बना हुआ है।
पत्थरों पर बहुत ही सुंदर नक्काशी दिखती है। आश्चर्यजनक यह है कि इस मंदिर की दीवारें, छत और यहां तक कि मंदिर के दरवाजों की चौखट तक पत्थरों से ही बनी हुई है।
इसकी आंतरिक संरचनाएं अभी भी मूल रूप से संरक्षित हैं
मंदिर में हाल ही में दक्षिण भारतीय शैली में एक नया गुम्बद बनाया गया है, जिसे लोकप्रिय रूप से “द्रविड़ शैली” के नाम से जाना जाता है। हालांकि इसकी आंतरिक संरचनाएं अभी भी मूल रूप से संरक्षित हैं और इसके गर्भगृह, मुख्य -मंडप में आंशिक परिवर्तन किए गए हैं। मंदिर मूल रूप से ईंटों और ग्रेनाइट पत्थरों से बनाया गया है, जो इसके प्रवेश द्वार और खंभे वाले हॉल में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
इस मेन गाँव के आँचल में अनेक प्राचीन पुरातात्विक अवशेष छुपे हुए हैं, जिनमे रुखड़ा महादेव, खेतेश्वर महादेव, एकमुखी शिवलिंग आदि प्रमुख हैं जो समय के साथ उजागर हुए हैं।
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