बराबर पहाड़ की गुफाये क्यों है, इतनी रहस्यमयी
बराबर पर्वत (Barabar caves in hindi ) – भारतवर्ष के पुरातन ऐतिहासिक पर्वतों में एक है। 1100 फुट ऊंचे बराबर पर्वत को “मगध का हिमालय” भी कहा जाता है। यहां सात अदभुत गुफाएं भी बनी हुई है। जिनका पता अंग्रेजों के कार्यकाल में चला । इनमें से चार गुफाएं बराबर गुफाएं एवं बाकी तीन नागार्जुन गुफाएं कहलाती है।
गुफाये एक ही चट्टान को काटकर बनाई गई हैं
भारत में पहाड़ों को काट कर बनाई गयी ये सबसे प्राचीन गुफाएं (Barabar gufayen) है। पर्यटन के लिहाज से भी ये काफी उपयुक्त स्थान है। ये पर्वत सदाबहार सैरगाह के रूप में प्राचीन काल से ही चर्चित है। किंवदंतियों के अनुसार पर्वत पर बनी गुफाएं प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के ध्यान साधना लगाने हेतु सुरक्षा के दृष्टिकोण से बनाई गई थी।
गुफाएं प्राचीन समय की कलाकारी को दर्शाती
गया – जहानाबाद सीमा पर अशोककालीन गुफाओं (Barabar gufayen) में कर्ण चैपर गुफा, सुदामा गुफा, लोमस ऋषि गुफा, नागार्जुन गुफा सहित सात गुफायें हैं। गौरतलब है कि कर्ण चैपर, सुदामा और लोमस ऋषि गुफा एक ही चट्टान को काटकर बनाई गई हैं।
देखने में अद्भुत लगने वाली ये गुफाएं प्राचीन समय की कलाकारी को दर्शाती हैं। गुफा के भीतर तेज आवाज में चिल्लाने पर काफी देर तक प्रतिध्वनियों को सुनकर आने वाले पर्यटक काफी रोमांचित होते हैं।
सुदामा गुफा
सुदामा गुफा का निर्माण सम्राट अशोक ने अपने राज्याभिषेक के बारहवें वर्ष में आजीवक साधुओं के लिए बनवाया था। इस गुफा में एक आयताकार मण्डप के साथ वृत्तीय मेहराबदार कक्ष बना हुआ है।
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लोमस गुफा (Barabar caves in hindi)
लोमस ऋषि की विख्यात गुफा का निर्माण भी अशोक ने था। इन गुफाओं का निर्माण मिश्र शैली में किया गया है तथा उस समय के भारतीय कारीगरों के उत्कृष्ट कलाकारी एवं वास्तु विशेषज्ञता का परिचायक है।
मेहराब की तरह के आकार वाली ऋषि गुफाएं लकड़ी की समकालीन वास्तुकला की नक़ल के रूप में हैं। द्वार के मार्ग पर हाथियों की एक पंक्ति स्तूप के स्वरूपों की ओर घुमावदार दरवाजे के ढांचों के साथ आगे बढ़ती है। यहां कई गुफाओं (Barabar gufayen) के अंदर भी गुफाएं है, जहां तक पहुंचना काफी मुश्किल है।
कर्ण चैपर गुफा
अशोक ने अपने राज्याभिषेक के 19वें वर्ष में इसका निर्माण कराया था।
गुफाओं का निर्माण भी मिश्र शैली से किया गया है
यहां मौजूद कर्ण चैपर गुफा (Barabar gufayen) को “सुप्रिया गुफा” भी कहा जाता था। उस समय के लिखे गये शिला लेख आज भी यहां मौजूद हैं। शिलालेखों के अनुसार इस पहाड़ी को सलाटिका के नाम से भी जाना जाता था।
इन गुफाओं (Barabar gufayen) का निर्माण भी मिश्र शैली से किया गया है। यहां चिकनी सतहों के साथ एक एकल आयातकार कमरे का रूप बना हुआ है।
वापिक गुफा
पहाड़ के ऐतिहासिक सप्त गुफाओं में बनी वापिक गुफा में अंकित तथ्यों से ज्ञात होता है कि इसकी स्थापना योगानंद नामक ब्राह्मण ने की थी।
मंदिर परिक्षेत्र में पाषाण खड़ों पर की गयी उत्कीर्ण कलाकृति इस पूरे क्षेत्र को प्राचीन शिव अराधना क्षेत्र के रूप में स्थापित करती है। एक अन्य मत के अनुसार आदिकाल में कौल संप्रदाय का मगध पर जो वर्चस्व था, उसका केन्द्र इसी पर्वत को बताया जाता है।
इसकी उत्पत्ति ई.पू. 600 के लगभग मानी जाती है। इन्हें दशरथ द्वारा आजीविका के अनुयायियों को समर्पित किया गया था।
विश्व जोपरी
विश्व जोपरी गुफा (Barabar gufayen) में दो आयातकार कमरे मौजूद हैं जहां चट्टानों को काटकर बनाई गई अशोका सीढियां द्वारा पहुंचा जा सकता है।
नागार्जुनी गुफाएं
नागार्जुन के आसपास की गुफाएं बराबर गुफाओं से छोटी एवं नयी है।
गोपीका गुफा (Barabar gufayen) और वापिया का गुफा लगभग 232 ईसा पूर्व में राजा दशरथ द्वारा आजीविका संप्रदाय के अनुयायियों को समर्पित की गई थी।
बराबर पहाड़ (Barabar gufayen) में अवस्थित इन गुफाओं को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है। जिस विशाल चट्टान को खोदकर गुफाएं बनाई गई है उस पर लोगों की आवाजाही बनी रहती है।
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अक्सर पर्यटक यहां पिकनिक मनाने आते है। लेकिन पास ही स्तिथ सिद्धेश्वर नाथ महादेव मंदिर पर वैसे यहां सालों भर भक्तगण व पर्यटक आते रहते हैं लेकिन श्रावण मास, बसंत पंचमी एवं महाशिवरात्री अनंत चतुदर्शी में भक्तों व पर्यटकों का आगमन बड़ी संख्या में होता है।
बराबर पहाड़ पर स्थित सिद्धेश्वर नाथ महादेव मंदिर
सावन के महीने में काफी संख्या में भक्त यहाँ मदिर में जल चढ़ाने आते है। जिससे आस पास के वातावरण भक्तिमय हो जाता है। शिव के भक्तगण यहाँ गेरुआ रंग के वस्त्र धारण कर आते है।
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बराबर पहाड़ घूमने कैसे आये
बराबर पहाड़ घूमने कैसे आये
बराबर पहाड़ तथा आस पास बनी गुफाओं को देखने आने के लिए आप हवाई ,रेलवे तथा सड़क मार्ग से आ सकते है। यह सभी मार्गो से जुड़ा हुआ है।
हवाई मार्ग
हवाई मार्ग से आने के लिये सबसे निकट में गया तथा पटना हवाई अड्डा है। जहाँ से नियमित रूप से देश के सभी हिस्सों के लिए उड़ाने उपलब्ध है। पटना तथा गया हवाई अड्डा उतरने के बाद टैक्सी तथा बस द्वारा वाणावर पंहुचा जा सकता है।
रेल मार्ग
सड़क मार्ग द्वारा
सड़क मार्ग से भी वाणावर अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। गया से यह २४ किलो मीटर की दुरी पर बराबर की गुफाये अवस्थित है। गया तथा पटना में होटल तथा धर्मशाला सभी के वजट में उपलब्ध है।
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