बिहार के है, तो आपको ये जरूर जानना चाहिये GI Tag Bihar
मगध क्षेत्र का मगही पान अब अंतरराष्ट्रीय पहचान मिल गया है | गया, औरंगाबाद, नवादा में होने वाले मगही पान को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन यानी जी आई टैग मिल चुका है | जिससे इसे खास तरह की पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो गया है |
GI Tag For Maghi Paan
मगही पान
मगध क्षेत्र में उपजाए जाने वाले मगही पान अपनी कोमलता तथा लाजवाब स्वाद के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है । इसका खास तरह का आकार सबका मन मोह लेता है। मगही पान का आकार दिल की तरह होता है और इसके पूंछ पान के अन्य किस्म के पत्तों से थोड़ी लंबी होती है।
मगध क्षेत्र में होने वाले मगही पान का रंग ज्यादा तथा गहरे हरे रंग का होता है। इन खास वजहों से मगध क्षेत्र में होने वाले मगही पान को इस क्षेत्र में इसकी खेती होने के कारण इसका जीआई टैग दिया गया है।
जिससे हम और आप गर्व महसूस कर सकते हैं।
मगध क्षेत्र के नवादा जिला के देवड़ी ग्राम स्थित मगही पान उत्पादक कल्याण समिति मगही पान के Geographical Indications टैगिंग के लिए आवेदन दिया था।
चेन्नई स्थित ज्योग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री ने अपने पत्रिका में मगही पान को जी आई टैग को स्वीकार कर लिया। जिसे 28 नवंबर के अंक में प्रकाशित भी किया गया था।
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क्या होता है ज्योग्राफिकल इंडिकेशन टैगिंग या जी आई टैगिंग
विशेष क्षेत्र में होने वाले खास उत्पाद को सरकार के उपक्रम ज्योग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री चेन्नई द्वारा सर्टिफिकेशन दिया जाता है। इस सर्टिफिकेशन के बाद उस खास उत्पाद को उस खास क्षेत्र का मान लिया जाता है। खास उत्पाद को वहां का बौद्धिक अधिकार दे दिया जाता है।
आज तक भारत के लगभग 325 उत्पादों को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन के द्वारा पंजीकृत किया गया है। जिसमें कांजीवरम की साड़ी, झाबुआ जिले की कड़कनाथ मुर्गे, पश्चिम बंगाल दार्जिलिंग की चाय तथा बिहार की सिलाव का खाजा को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन सर्टिफिकेशन किया गया है।
भारत में पहली बार ज्योग्राफिकल इंडिकेशन दार्जिलिंग की चाय को दिया गया था। साल 2004 में इसका सर्टिफिकेट दिया गया था। ज्योग्राफिकल इंडिकेशन टैग मिल जाने के बाद कुछ खास उत्पाद का विपणन बहुत ही आसानी तरीके से हो जाता है।
जैसे आज भी लोग यदि बनारस जाते हैं, तो बनारसी साड़ी को लोग जरूर खरीद कर अपने घर लाते हैं, क्योंकि बनारसी साड़ी का ज्योग्राफिकल इंडिकेशन सर्टिफिकेट दिया गया है। जिससे इसे खास पहचान मिल गया है और यह एक ब्रांड बन गया है।
बिहार के मगही पान के अलावा और भी कई बिहार के खास उत्पादों को चेन्नई स्थित ज्योग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्रेशन ने जी आई टैग दिया है।
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Geographical Indications For Katarni Dhan
कतरनी धान
कतरनी धान मुख्यतः बिहार के भागलपुर क्षेत्र का खास उत्पाद है जो अपने खास आकार तथा अपनी सुगंध के लिए विश्व विख्यात है। बिहार में किसी भी घर में जब खास फंक्शन होता है, तो कतरनी धान से बने हुए चावल का खास व्यंजन जरूर बनाया जाता है।
इस चावल से बनाए हुए व्यंजन का सुगंध से आस-पड़ोस में आसानी से पहचान लिया जाता है।
भागलपुर स्थित कतरनी धान उत्पादक संघ ग्राम – जगदीशपुर में स्थित है। उन्होंने अपने इस कतरनी धान को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्रेशन पंजीकृत करने के लिए आवेदन दिया था।
जिसे चेन्नई स्थित ज्योग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री ने पड़ताल के बाद कतरनी धान को अपने पत्रिका में रजिस्टर कर लिया तथा इसे प्रकाशित भी कर दिया गया।
Geographical Indications For Jardalu Aam
जरदालु आम
बिहार के भागलपुर क्षेत्र में होने वाले जरदालु आम अपने विशेष आकार, रंग और सुगंध के लिए विश्व विख्यात है। कहा जाता है, कि सर्वप्रथम अली खान बहादुर ने क्षेत्र में जरदालु आम को लगाया था। क्योंकि इस क्षेत्र में आम की खेती के लिए अनुकूल वातावरण मिलता था।
उसी समय से जरदालु आम अपने स्वाद और रंग, सुगंध के कारण विश्व विख्यात हो गया तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी निर्यात किया जाता है। इसका स्वाद तथा सुगंध के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी काफी मांग है।
भागलपुर स्थित जरदालु आम उत्पादक संघ मधुबन ने जर्दालु आम को जी आई टैगिंग के लिए आवेदन दिया था। यह संघ भागलपुर के सुल्तानगंज प्रखंड के महेशी गांव के है।
ज्योग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्रेशन ने काफी पड़ताल के बाद भागलपुर के जरदालु आम को जी आई टैग का प्रमाण पत्र दे दिया। जिससे बिहार के लोगों को गौरवान्वित होना स्वाभाविक है क्योंकि इस तरह का खास आम भारत में कहीं भी नहीं उपजाया जाता है।
Geographical Indications For Silao Khaja
सिलाव खाजा
बिहार के नालंदा जिले में बनाए जाने वाले खाजा को भी ज्योग्राफिकल इंडिकेशन टैग से प्रमाणित किया गया है। इस खाजा को नालंदा जिले के सिलाव क्षेत्र में बनाया जाता है। सिलाव में स्थित सिलाव खाजा औद्योगिक सहकारी समिति के द्वारा जी आई टैग के लिए आवेदन दिया गया था।
इस संघ ने अपने क्षेत्र में होने के प्रमाण के लिए उन्होंने बताया कि महात्मा बुद्ध ने भी इस मिठाई को चखा था। गौतम बुद्ध ने एक खास किस्म की मिठाई को खाने के बाद इसका नाम पूछा तो लोगों ने बताया कि खा जा यानी कि आप इसे खा लो, यानी कि खाजा का इतिहास बहुत ही पुराना है.
इंग्लैंड के मशहूर इतिहासकार 1872-73 में सिलाव घूमने आए थे, तो उन्होंने इस मिठाई का अपने यात्रा वृतांत में वर्णन किया था। जिससे कि इसका इतिहास और भी पुख्ता हो जाता है। सिलाव का खाजा का जी आई टैग इन के लिए क्षेत्र का होना प्रमाणित होता है।
सिलाव के खाजा का कंपटीशन जी आई टैग के लिए काकीनाडा आंध्र प्रदेश तथा उड़ीसा के खाजा के साथ था, लेकिन बिहार के खाजा के क्षेत्र के इतिहास को देखते हुए जी आई टैग इससे प्रमाणित किया गया।
Geographical Indications For Shahi Litchi
शाही लीची
बिहार का शाही लीची का अलग ही सुगंध तथा स्वाद होता है। इस कारण पहले से ही राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक ब्रांड बन चुका है।बिहार के शाही लीची का हमेशा से ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी मांग होता है।
शाही लीची का उत्पादन में बिहार के वैशाली, पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर तथा बेगूसराय में किया जाता है। बिहार के शाही लीची का जीआई टैग मिल जाने से एक खास तरह का इसका अंतरराष्ट्रीय पहचान होगा.
इसके अलावा जी आई टैग मिल जाने से एक खास ब्रांड बन जाता है। खराब तथा नकली गुणवत्ता वाले लीची का मांग घटेगी।शाही लीची को जीआई टैग मिल जाने से इसे उपजाने वाले किसानों को भी अधिक लाभ मिलेगा तथा उन्हें बाजार में अच्छी मूल प्राप्त होगा।
बिहार भारत का कुल लीची उत्पादन का 40% अकेले ही उत्पादन करता है।
बिहार के लीची उत्पादक संघ के अध्यक्ष बच्चा प्रसाद सिंह ने जी आई पंजीकरण के लिए आवेदन किया था। जिसे चेन्नई स्थित ज्योग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्रेशन ने स्वीकार किया तथा शाही लीची को जी आई से प्रमाणित किया गया।
मखाना
मधुबनी में उपजाये जाने वाले मखाना को इसी साल ज्योग्राफिकल इंडिकेशन टैग से प्रमाणित किया गया। बिहार के मधुबनी में उपजाए जाने वाले मखाना काफी अच्छे किस्म के होते हैं।
मखाना में भरपूर मात्रा में प्रोटीन तथा कार्बोहाइड्रेट पाए जाते हैं. बिहार में उपजाये जाने वाले मखाना को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहले से ही काफी पहचान मिली हुई है। इसका निर्यात पाकिस्तान, चीन तथा अरब देशो में पहले से ही होते आया है।
अभी इसका जी आई टैग मिल जाने से उत्पादन करने वाले किसानों को भी अच्छी कीमत तथा अंतरराष्ट्रीय पहचान भी मिलेगा।
मखाना की खेती के लिए काफी मात्रा में मजदूर तथा पानी की जरूरत पड़ती है। उत्तर बिहार में इसकी खेती तालाबों में किया जाता है। तालाबों से निकालने के बाद इसे भुंजा जाता है तथा इसके बाद इसके सेल से मखाना को निकाला जाता है।
इसके लिए काफी मेहनत तथा स्किल की जरूरत पड़ती है। इस तरह के स्किल केवल उत्तर बिहार के मखाना उत्पादक किसानों में ही पाया जाता है।
चेन्नई स्थित ज्योग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्रेशन ने प्रमाणित करने से पहले इसकी काफी जांच पड़ताल किया। सहरसा के किसानों ने भी मखाना को अपनी ज्योग्राफिकल इंडिकेशंस के लिए अप्लाई किया था। लेकिन मधुबनी के किसानों के मखाना की उच्च क्वालिटी तथा उच्च गुणवत्ता के कारण इन्हें प्रमाणित किया गया।
सुजनी
सुजनी जो बिहार का एक पारंपरिक काम है, जो मुख्यतः गांव में औरतों के द्वारा किया जाता है। सुजनी क्राफ्ट द्वारा औरतें पुराने धोती, साड़ी या पुराने कपड़ों के द्वारा आपस में सील देती है। सिलने के बाद उसके ऊपर तरह तरह की डिजाइन बनाती है।
जो देखने में काफी आकर्षक तथा मनमोहक होता है।
इसके अलावा सूजनी वर्क के द्वारा घर में इस्तेमाल होने वाले परदे, बेडशीट, तौलिया, रुमाल, थैला, दीवार को सुसज्जित करने वाले डेकोरेटिव चीजों का निर्माण किया जाता है।
घर में प्रयोग होने वाले थैलो के ऊपर सूजनी के द्वारा इसे विशेष तरह की नक्काशी किया जाता है। इस कार्य को बिहार में सुजनी वर्क के नाम से जानते है।
बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के भूसर गांव के महिलाये इस कार्य को करती है। 21 सितम्बर 2006 को “Sujani Embroidery Work of Bihar” के नाम से ज्योग्राफिकल इंडिकेशन टैग दे दी गई और यह क्राफ्ट बिहार के नाम पर रजिस्टर्ड हो गया।
बिहार के मुजफ्फरपुर में सुजनी का इस तरह का कार्य को करते हैं। इसके अलावा मधुबनी तथा उत्तर बिहार के कई जिलों में सूजनी एंब्रायडरी का कार्य किया जाता है।
Sikki Grass Work of Bihar
बिहार में कई जगहों पर सिक्की घास के द्वारा अनेक तरह के घर में इस्तेमाल होने वाले चीजों का निर्माण किया जाता है। इसके अलावा इससे सजावटी चीजो का निर्माण किया जाता है। बिहार में कई जगहों पर इस घास को “कासी” भी बोला जाता है।
कासी घास को सुखाने के बाद उसके ऊपर वाले भाग को काट दिया जाता है, जो कि फूल होता है। इसे सुखाने के बाद एक तरह का सुनहरा रंग का फाइबर मिलता है।
इसे अनेक तरह के रंगों के साथ रंग दिया जाता है और रंगने के बाद इससे घर में इस्तेमाल होने वाले पात्रों तथा सजाने के लिए अनेक तरह का वस्तुओं का निर्माण किया जाता है। इसके अलावा इससे पौती का निर्माण भी किया जाता है।
जिसका इस्तेमाल बिहार में होने वाली शादियों में मां अपनी बेटी को विदा होते समय पौती के रूप में दिया जाता है।
इसके अलावा इससे सिंदूर तथा ज्वेलरी रखने के लिए पात्र का निर्माण किया जाता है। सिक्की घास के द्वारा डोलची (बास्केट ) का निर्माण किया जाता है। इस कार्य को सिक्की क्राफ्ट कहते है।
इसको “Sikki Grass Work of Bihar” के नाम से ज्योग्राफिकल इंडिकेशंस टैग बिहार राज्य को दिया गया है।
मधुबनी पेंटिंग
मधुबनी पेंटिंग बिहार की काफी पुरानी कला है, जो कि बिहार के उत्तरी भाग मधुबनी जिला में वहाँ की औरते पारंपरिक रूप से करती है।
मधुबनी पेंटिंग में मुख्यतः औरतें देवी देवताओं, जानवरों , पंछियो तथा फूलों को दीवारों पर पेंटिंग बनाती हैजी आई टैग से पंजीकृत किया है। खटवा वर्क के लिये कलाकार खुद ही इसका मटेरियल का उत्पादन करता है तथा उससे खटवा वर्क का काम करता है।
वे मुख्यतः वहां मनाए जाने वाले त्योहारों के सीजन में जैसे दीपावली, दशहरा, होली आदि के समय अपने दीवारों को सजाने के लिये इसका पेंटिंग किया करते है।
लेकिन जैसे-जैसे मधुबनी पेंटिंग्स प्रचलित होता गया इसे कमर्शियल रूप देते गए। आज वहां मधुबनी पेंटिंग्स दीवारों से हटकर कपड़ों पर तथा सजाने के लिए अनेको अनेक चीजों पर भी किया जा रहा है।
मधुबनी पेंटिंग की चित्रकारी अब सजाने के लिए तरह तरह के कपड़ों के ऊपर तथा फर्श के ऊपर भी मधुबनी रंगोली पेंटिंग किया जा रहा है।
यह पेंटिंग आप अमेज़न से 56 प्रतिशत छूट पर खरीद सकते है।
अभी कुछ समय पहले भारतीय रेल की पूरी ट्रेन को मधुबनी पेंटिंग से पेंट किया गया है। इसके अलावा कई स्टेशनों को जो कि भारतीय रेल के स्टेशन है, वहां भी मधुबनी पेंटिंग से दीवारों को सजाया गया है।
इसके अलावा मधुबनी पेंटिंग भारत ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी काफी ख्याति प्राप्त कला है। मधुबनी चित्र कला के लिए जो रंग बनाए जाते हैं, वह प्राकृतिक रूप से तैयार रंग होते हैं।
उसमें किसी भी तरह का कोई भी रासायनिक तत्व का इस्तेमाल नहीं किया जाता। मधुबनी चित्र कला का यह सबसे बड़ी खासियत है।
मधुबनी चित्रकला के लिए मधुबनी चित्रकला संघ ने ज्योग्राफिकल इंडिकेशंस के लिए आवेदन दिया था। जिसे जीआई टैग रजिस्ट्री ने मंजूर कर लिया और इसे पंजीकृत कर लिया। यह कला बिहार का गौरव है।
इसके लिए बिहार सरकार ने काफी इंटरेस्ट के साथ इसको जीआई टैग के लिये महत्वपूर्ण भूमिका निभाया था।
Khatwa Work of Bihar
बिहार का एक और कला जो काफी मशहूर है , जिसे खटवा वर्क या बिहार का खटवा कला के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस कला को “Applique (Khatwa) Work of Bihar” के नाम से जी आई टैग से पंजीकृत किया है।
खटवा वर्क के लिये कलाकार खुद ही इसका मटेरियल का उत्पादन करता है तथा उससे खटवा वर्क का काम करता है।
इस हैंडीक्राफ्ट में पुराने कपड़ों तथा नए कपड़ों के अनेक रंगों को मिलाकर के एक मोटा कपड़ा तैयार करते हैं और उस कपड़े से अपना प्रोडक्ट बनाते हैं।
जिससे मुख्यत टेंट, पंडाल, साड़ी तथा कई तरह के अन्य समान तैयार किया जाता है। यह काफी ही विचित्र तरह का कला है जो कि आज से नहीं बहुत पुराने समय से भी इस काम को किया जा रहा है।
मुगल काल में भी बड़े बड़े घरो के कपड़ा, इसी कला के द्वारा बनाए हुए कपड़े पहना जाता था।
GI Tag List of Bihar in hindi
भागलपुरी सिल्क
बिहार के भागलपुर के सिल्क अपने कोमलता तथा सुंदरता के लिए बहुत ही प्रसिद्ध है। इसका व्यापार सदियों से देश विदेश में होता आ रहा है। भागलपुर में तुषार सिल्क के काम मे लगभग 30000 स्किल मज़दूर लगे हुए हैं।
वहाँ करीब 25000 सिल्क के लूम लगे हुये थे। इसका व्यापार लगभग 100 करोड़ प्रति वर्ष की है।
भागलपुर की सिल्क की साड़ी भी विश्व प्रसिद्ध है। जिसे 200 सालो से बनाता आ रहे हैं। इसे रंगने के लिए विशेष प्रकार से तैयार प्राकृतिक रंगों का प्रयोग होता है, जिससे यह अन्य सिल्क कपड़ों से इसे अलग करता है।
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