कोंच का श्री कोचेश्वर महादेव मंदिर जो है राष्ट्रीय धरोहर

कोंच का श्री कोचेश्वर महादेव मंदिर जो है, राष्ट्रीय धरोहर

यह मंदिर गया जिले के मुख्यालय से 31 कि.मील उतर-पश्चिम कोच में स्थित है। टिकारी शहर से 8.5 किलोमीटर सड़क मार्ग से जा कर 52 मंदिर व 52 तालाब की नगरी कोंच के कोंचदीह में बने इस मंदिर का दर्शन किया जा सकता है। जो छः फीट ऊंचे बने प्लेटफार्म के उपर बना 99 फीट ऊंचा शिव मंदिर है। इसके बगल में 32 फीट का विशाल सभा भवन है। कोचेश्वर नाथ मंदिर अप्रतिम है। मगध क्षेत्र में विराजमान यह मंदिर राष्ट्रीय धरोहर है। इस मंदिर का जिक्र लेखक डीआर पाटिल ने भी किया। कनिंघम ने मंदिर को पालकालीन धरोहर बताया है।

Konch Shiv temple Gaya

इस मंदिर का निर्माण उड़ीसा शैली के मंदिरों की तरह है।

श्री कोचेश्वर नाथ सांस्कृतिक विरासत के रूप में ऐतिहासिक शैव तीर्थ मंदिर है। मगध की सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक परम्परा के लिए कोंच के कोचेश्वर महादेव मंदिर का अपना अलग स्थान है। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत इसकी निर्माण पद्धति है जो ईंटों से बने प्राचीन भारत के पुराने व सही सलामत मंदिरों में एक है। इसका निर्माण उड़ीसा शैली के मंदिरों की तरह है।

इस मंदिर का निर्माण औरंगाबाद के उमगा राज के राजा भैरवेंद्र ने सन 1420 ई. के आस-पास कराया था।

जगत गुरु आदि शंकराचार्य ने यहां ढाई-फीट का शिवलिंग वैदिक मंत्रोधार के साथ स्थापित किया था। जिसे आज भी देखा जा सकता है।

उमगा राज के बारें में

उमगा राज औरंगाबाद के देव से 8 मील पूर्व और मदनपुर के नजदीक था। इसे उमगा को मुनगा नाम से भी जाना जाता था। उमगा के पहाड़ बहुत से मंदिर और बहुत बड़ा जलाशय था। उमगा के राजा भैरवेंद्र का गया और औरंगाबाद के बहुत बड़ा भाग पर राज था। उनके दरबार में पंडित थे, उनका नाम जनार्दन था। जो उमगा के छोटे से गाँव पुरनाडीह में रहते थे। पंडित जनार्दन शिलालेख रचयिता भी थे। उमगा बाद में देव राज के अंतर्गत आ गया था।

मंदिर को अनेक विदेशी इतिहासकारों ने रेखांकित किया हैं

सर्वप्रथम लावगढ़ विजय की खुशी में टिकारी राज के प्रथम राजा वीर सिंह उर्फ़ धीर सिंह ने इस ऐतिहासिक मंदिर का पुनरुद्धार कर नया रूप दे कर साज-श्रृंगार कराये थे।

इस मंदिर की प्रसिद्धि सम्पूर्ण देश में तब हुई सन 1812 में स्कॉटलैंड के मि. फ्रांसिस बुचनन हैमिलटन– भूगोलिक, जीव विज्ञानी और वनस्पति-विज्ञानिक ने अपनी यात्रा क्रम में न सिर्फ कोंच के अलावा आस-पास के पुरातत्व स्थलों का भी दौरा किया साथ ही साथ कोंच के कोचेश्वर को ऐतिहासिक देवालय के रूप में रेखाकिंत किया।

सन 1846 में ब्रिटन सेना के कैप्टेन एम. किट्टो ने भी इस स्थल का भ्रमण कर इसे प्राचीन मंदिर बताया था।

सन 1861 में ब्रिटिश इतिहासकार थॉमस फ्रेज़र पेपे ने यहाँ आ कर अपनी रिपोर्ट में बताया है की मंदिर को सबसे पहले बनाने में मिटटी युक्त ईंट का प्रयोग करते हुए इसके ऊपर अधिरचना किया गया था। बाद में मंदिर को पुनरुद्धार कर इसे सही आकार में लाया गया। मंदिर के आतंरिक रचना को रंग रोगन किया गया था।

सन 1872 में अमेरिकन-भारतीय इंजिनियर, पुरातत्ववेत्ता, फोटोग्राफर मि. जोसेफ डेविड बेलगर, सर्वेक्षण करने के लिए मंदिर आये। उन्होंने अपने कैमरा में इस मंदिर का ऐतिहासिक चित्र खीचा था। जिन्होंने अपनी पुस्तक ‘इंडियन हेरिटेज एंड कल्चर’ में कोंच के बारे में विस्तार से लिखा है।

Konch Shiv temple Gaya

फोटोग्राफर मि. जोसेफ डेविड बेलगर

सन 1892 में ब्रिटन सेना के इंजिनीयर मेजर जनरल सर अलेक्जेण्डर कनिधंम ने यहां की यात्रा कर इसे भरपूर संभावना वाला ऐतिहासिक स्थल बताया।

सन 1902 में डेनमार्क के पुरातत्ववेत्ता, फोटोग्राफर, गया जिला के सर्वेक्षणकर्ता मि. थिओडोर बलोच इस मंदिर को देखने और सर्वे के लिए आ चुके है। थिओडोर ने भी इस जगह को बहुत बड़ा आस्था और धार्मिक का केंद्र माना है। यहां के कितने ही अनसुलझे तथ्यों को उन्होंने स्पष्ट किया था।

konch shiv temple gaya

आजादी के बाद भारत सरकार के पुरातत्व विभाग के द्वारा इसका अधिग्रहण कर, इसे हर संभव सुरक्षा व संरक्षा प्रदान की गयी।

इस मंदिर को कम से कम तीन बार पुनरुद्धार किया गया है

इस मंदिर में शंकर, गणेश, कार्तिकेय, बुध, कुबेर, विष्णु, भैरव, सप्तमातृका यानि सात शक्तियों जिनका पूजन विवाह आदि शुभ अवसरों के पहले होता हैं। अन्य देवी देवताओं की मूर्तियाँ भी यहाँ देखीं जा सकती हैं। इस मंदिर के निर्माण में तीन तरह की ईंट के इस्तेमाल होने का प्रमाण हैं कि इसका मतलब इस मंदिर को कम से कम तीन बार पुनरुद्धार किया गया। मंदिर भिन्न आकारों की जली हुई ईंटों से निर्मित है। कुछ ईंटें 11 “x 5” x 2 “, कुछ 9” x 4 “x 2” और अन्य 13 “x 7” x 2 “ की माप की है।

Konch Shiv temple Gaya

मंदिर के ठीक सामने ही एक विशाल सरोवर है

मंदिर का प्रवेश द्वार एक बड़ा दरवाज़ा है। मीनार के सामने की ओर खुलने वाला प्रवेश द्वार को निचले आयताकार के पार एक पत्थर द्वारा दो भागों में विभाजित किया गया है। मंदिर के अन्दर के भाग गर्भगृह है। कोंच में इस मंदिर के ठीक सामने ही एक विशाल सरोवर है। मंदिर जाने के मार्ग में श्री विष्णु भगवान मंदिर, पीछे के स्थान में विशालगढ़, सहस्र शिव मंदिर, देवी स्थान, ब्रह्म स्थान व अकबरी महादेव के दर्शन से स्पष्ट होता है कि किसी जमाने में यह स्थल सम्पूर्ण क्षेत्र का आस्था का विशिष्ट केंद्र रहा है।

उत्कृष्ट राष्टीय धरोहर के रूप में नामित किया गया है

कोंचेश्वर शिव मंदिर भारत में ऐसी मंदिर है जहां पर कालसर्प योग यज्ञ के लिए उपयुक्त माना गया है। इस मंदिर को 1996 में पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा उत्कृष्ट राष्टीय धरोहर के रूप में नामित किया गया है। पुरातत्व विभाग पटना द्वारा 2001 में दस लाख रुपये खर्च भी किए, लेकिन आज तक विशेष कार्य नहीं हो पाया है। आस्था के केन्द्र के पर्यटन स्थल बनाने की पूरी संभावनाएं मौजूद है। लेकिन सरकार इसपर विशेष गंभीर नहीं दिख रही है।

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बैजूधाम गया, अद्भुत चमत्कारी है

बराबर पहाड़ पर स्थित सिद्धेश्वर नाथ महादेव मंदिर

बाबा कोटेश्वरनाथ मंदिर पांचवीं शताब्दी का मंदिर है

स्फटिक शिवलिंग के अंदर नाग की आकृति काफी रहस्यमयी और विस्मयकारी है

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