घी के दिए जलाते हैं जो नौ दिन तक अनवरत जलता रहता है
गया जिला मुख्यालय से लगभग 38 किमी और टिकारी से 13 किमी. उतर अवस्थित केसपा गांव में प्रसिद्ध मां तारा देवी का मंदिर स्थित है। यों तो यहाँ पूजा-अर्चना करने भक्तजन वर्ष भर आते हैं। परंतु आश्विन माह में शारदीय नवरात्र में मां तारा देवी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। इस अवसर पर श्रद्धालुओं व भक्तजनों द्वारा देवी के समक्ष घी के दिए जलाते हैं जो नौ दिन तक अनवरत जलता रहता है।
यही कारण है कि यह मंदिर धार्मिक और लोक आस्था का महाकेन्द्र माना जाता है। इसका वर्णन अनेक पौराणिक ग्रंथों में भी है।
महर्षि कश्यप मुनी ने केसपा गांव के पास एक मंदिर बनाये थे, यह मंदिर बौद्ध वास्तुकला में अद्वितीय है और कई संस्कृतियों का एक वास्तुशिल्प समावेशन है। माँ तारा मंदिर एक उच्च और व्यापक प्लिंथ पर खड़ा है और इसमें एक उग्र पिरामिड स्पिर, स्क्वायर क्रॉस-सेक्शन और 2 छोटे स्पीयर हैं।
गदहिया ईट से निर्मित मंदिर के गर्भ गृह की दीवार 4-5 फीट मोटी है
मां तारा देवी और मंदिर की स्थापना कब और किसने किया किसी को कोई जानकारी नही है। गाँव के बुजुर्ग भी इस संबंध में कुछ नही जानते। कच्ची मिट्टी और गदहिया ईट से निर्मित मंदिर के गर्भ गृह की दीवार 4-5 फीट मोटी है। गर्भ गृह की सुन्दर नक्काशिया मंदिर में प्रवेश करने वाले श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है।
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आदमकद प्रतिमा काले पत्थर की बनी है
मुख्य मंदिर, मंदिर में स्थायी रूप से माँ तारा की एक कालि छवि है, जो ज्ञान को दर्शाती है। गर्भ गृह में विराजमान मां तारा देवी की वरद हस्त मुद्रा में उतर विमुख 8 फीट उंची आदमकद प्रतिमा काले पत्थर की बनी है। मां तारा के दोनों ओर दो यागिनिया खड़ी है।
प्रतिमा पर प्राकृत भाषा में कई लेख उत्कीर्ण है, जिसे आज तक पढ़ा नही जा सका है। मंदिर के चारों ओर एक बड़ा चबूतरा है। जिसमें इसका पौराणिक महत्व है।
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केसपा नाम कश्यपा का अपभ्रंश हैं
केसपा नाम कश्यपा का अपभ्रंश हैं। यहां कभी कश्यप मुनि रहा करते थे। यहां उनका आश्रम था। इस स्थान को तब कश्यप मुनि की वजह से कश्यपा कहा जाता था। बाद में कश्यपा नाम धीरे-धीरे केसपा में तब्दील हो गया।
मां तारा का यह हवनकुंड कभी नहीं भरता
केसपा गांव के इस पौराणिक मंदिर में मां तारा विराजती है। चमत्कार देखिए, यहां माता का एक हवनकुंड है। इस हवनकुंड में पूरे नवरात्र रोज दस-दस, बीस-बीस मन हवन सामग्री हवन की जाती है, पर मनों भष्म कहां चला जाता है, किसी को कुछ नहीं पता।
केसपा गांव के निवासी बताते है कि मां तारा मंदिर का यह हवनकुंड कभी नहीं भरता। इस हवनकुंड से राख आजतक कभी नहीं निकाली गई।
यहाँ एक त्रिभुजाकार विशाल हवन कुण्ड है जिसमें सालों भर आहुति डाली जाती है। लेकिन वो भरता कभी नही है।
श्रद्धालु यहां पाठ करने और हवन करने आते हैं
आश्विन में शारदीय नवरात्र और चैत में बसंती नवरात्र के अवसर पर श्रद्धालुओं की अपार भीड़ यहाँ जुटती है। बाहर से आए श्रद्धालु 9 दिनों तक मंदिर परिसर में रहकर नवरात्र का पाठ करते हैं। इस दौरान बहुत सारे श्रद्धालु अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि के लिए अखण्ड दीप जलाते हैं। जो नौ दिनों तक अनवरत जलते रहता है।
प्रत्येक वर्ष शारदीय और वसंती नवरात्र के अवसर पर महाअष्टमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। साथ ही भव्य सास्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है।
आस्था और विश्वास का केन्द्र माना जाने वाली मां तारा देवी के दर्शन हेतु श्रद्धालुओं की अपार भीड़ लगी रहती है। मंदिर की लोकप्रियता के कारण हीं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी, नागालैंड के पूर्व राज्यपाल निखिल कुमार सहित कई बड़ी हस्तिया मां तारा के चरणों में शीश झुका चुके हैं।
ग्रामीण बताते हैं कि यूं तो पूरे वर्ष मां तारा के दरबार में दूर-दूर से भक्तों का आना जाना लगा रहता है, पर नवरात्र के मौके पर यहां भारी भीड़ उमड़ती है। दूर-दूर से साधु और श्रद्धालु यहां पाठ करने और हवन करने आते हैं।
मां तारा देवी किसी को निराश नहीं लौटाती
ग्रामीण बताते हैं कि इस मंदिर की महिमा की चर्चा बढ़ती ही जा रही है, क्योंकि मां तारा देवी किसी को निराश नहीं लौटाती। यहां मन्नत मांगने और मनोकामना पूरी होने के बाद माता का आशीर्वाद लेने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ती रहती है।
महादेव देखते ही देखते पूरा विष पी गए
समुद्र मंथन से हलाहल (विष) निकला था। पूरे ब्राह्मांड में किसी में सामर्थ्य नहीं था कि इस विष को छू भी लेता। यह विष इतना शक्तिशाली था कि इसके नजदीक जाने भर से देवता और दानव मूर्च्छित हो रहे थे। पूरे ब्राह्मांड में हाहाकार मच गया कि बस प्रलय आ ही चुका है।
अभी और इसी समय इस सृष्टि का अंत हो जाएगा, पर तभी भोलेनाथ महादेव शिव शंकर आगे आए और जगत की रक्षा के लिए विष से भरा घड़ा उठा लिया। फिर देखते ही देखते पूरा विष पी गए।
मां तारा महादेव शिव शंकर की भी मां हो गईं
विष पीते ही शिव का गला नीला हो गया और स्वयं महादेव भी मूर्च्छित हो गए। अब क्या होगा, चारों ओर हाहाकार मच गया। महादेव को क्या हो गया। तभी प्रकट हुईं मां। हां, मां तारा प्रकट हुईं, माता आईं और छोटे बालक की तरह महादेव को गोद में उठा लिया। फिर मां तारा ने महादेव को अपना दूध पिलाया। दूध पीते ही महादेव की मूर्छा (बेहोशी) टूट गई।
दूध के प्रभाव से विष समाप्त हो गया और तभी से मां तारा की जय जयकार तीनों लोकों में होने लगी और उनकी पूजा अर्चना होने लगी।और महादेव ने मां तारा को प्रणाम किया। इस तरह मां तारा महादेव शिव शंकर की भी मां हो गईं।
मंदिर में लगभग एक सदी पूर्व बली प्रथा कायम थी। लेकिन राहुल सास्कृत्यायण के केसपा आगमन और बली प्रथा पर रोक लगाने के आग्रह के पश्चात यह प्रथा यहाँ बंद हो गया।
बुद्ध के काल से भी पुराना है यह मंदिर
मां तारा की महिमा को बखान करने की शक्ति तो साक्षात मां सरस्वती की कलम में भी शायद ही हो। यह कलीयुग है, कहा जाता है कि कलीयुग में चमत्कार नहीं होते, पर मां तारा की महिमा देखिए।
बिहार के गया के टेकारी के केसपा गांव में मां तारा का पौराणिक मंदिर है। यह मंदिर बुद्ध के काल से भी पुराना है, क्योंकि बुद्ध भी यहां आ चुके हैं। यहां खुदाई में बुद्ध की भी छह फीट से भी ऊंची काले पत्थरों से बनी अति दुर्लभ प्रतिमा मिली है।
बुद्ध ने यहां के लोगों को प्रवचन दिया था
केसपा में सैकड़ों वर्ष पहले जमीन की खुदाई के दौरान भगवान बुद्ध के काले पत्थर की अतिदुर्लभ छह फीट से भी ज्यादा ऊंची प्रतिमा मिली थी। कहा जाता है कि भगवान बुद्ध भी केसपा आ चुके हैं और यहां प्रवचन दे चुके हैं।
जमीन की खुदाई के दौरान कमल का वह सिंहासन भी मिला है, जिस पर बैठ कर बुद्ध ने यहां के लोगों को प्रवचन दिया था।
आठ फीट ऊंची है मां तारा की प्रतिमा
केसपा मंदिर में मां तारा की पौराणिक मूर्ति आठ फीट से भी ऊंची है। इस मूर्ति के सामने खड़े होकर नवरात्र में जो हाथ जोड़ लेता है, माता उसके सारे दुख हर लेती हैं।
मां तारा की मूर्ति पर किसी लिपि में बहुत कुछ लिखा हुआ है, पर इसे आजतक नहीं पढ़ा जा सका है। पुरातत्वविदों को इस मंदिर की दीवारें भी बहुत कुछ बता सकती हैं। यहां की दीवारें चार फीट से ज्यादा चौड़ी हैं।
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कैसे पहुंचे माँ तारा मंदिर केसपा
मंदिर तक टिकारी एवं कुर्था से सड़क मार्ग से लगभग 13 किमी दूरी तय कर पहुंचा जा सकता है। प्रत्येक वर्ष कई विदेशी सैलानी भी मां तारा देवी के इतिहास का अवलोकन करने और साक्षात दर्शन के लिए आते हैं।
अगर आप हवाई मार्ग से आ रहे हों तो आपको गया अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा या पटना हवाई अड्डे पर लैंड करना पड़ेगा वहाँ से गया रेलवे जंक्शन आना पड़ेगा।
यदि आप रेल मार्ग से आरहे हैं तो भी आपको गया रेलवे जंक्शन आना पड़ेगा। जंक्शन के पश्चिमी ओर से बस या तीन पहिया टैक्सी लेना होगा
यदि आपको केसपा के लिए सीधा कोई वाहन नही मिल रही हो तो उस स्थिति में आपको टिकारी के लिए वाहन लेना पड़ेगा उसके बाद टिकारी से वाहन बदलना पड़ेगा।
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