Pretshila Gaya History | Photo | Tourist Places In Gaya

Pretshila Gaya जहाँ प्रथम संस्कार भगवान ब्रह्मा जी द्वारा किया गया था

गया में पुराने समय में 365 वेदियां थी जहां लोग पिंडदान किया करते थे, परंतु वर्तमान समय में 45 वेदियां हैं जहां लोग पिंडदान कर तथा नौ स्थानों पर तर्पण कर अपने पुरखों का श्राद्ध करते हैं. इन्हीं 45 वेदियों में से एक वेदी Pretshila Gaya वेदी है. हिंदू संस्कारों में पंचतीर्थ वेदी में Pretshila Gaya की गणना की जाती है.

View From PretShila Hill Gaya

Pretshila Gaya में पिंडदान देने से मृतक का प्रेत योनि से उद्धार हो जाता है

पहाड़ी के शिखर पर हिंदु पौराणिक कथाओं के अनुसार वहाँ पर प्रेतराजा या भगवान यम का मंदिर है। कहा जाता है कि प्रेत (भूत) को शांत करने के लिए, जिसे एक बार पहाड़ी पर प्रेतवाधित किया गया था. धार्मिक मान्यताओ के अनुसार Pretshila Gaya में पिंडदान देने से मृतक का प्रेत योनि से उद्धार हो जाता है।

प्रेतशिला, रामशिला से 4 कि.मी. कि दुरी पर है। Pretshila Gaya का पुराना नाम प्रेतपर्वत है। प्रेतशिला अन्य नामो से भी जाना जाता है. प्रेतकला एवं प्रेतगिरि भी कहा जाता है. गया-शहर से यह स्थान 8 कि.मी. दूर उत्तर पश्चिम में अवस्थित प्रेतशिला पर्वत एक पिंड वेदी है। 

Pretshila Hil Gaya | Devotee Pindan Karte Huye Above PretShila Hill
Pretshila Hil Gaya | Devotee Pinddan Karte Huye Above PretShila Hill

Pretshila Gaya वेदी इंदौर के रानी अहिल्याबाई द्वारा इस स्थान पर बनाया गया था

यह मंदिर मूल रूप से इंदौर के रानी अहिल्याबाई द्वारा इस स्थान पर बनाया गया था और उसके बाद कई बार पुनर्निर्मित किया गया है।प्रेतशिला पर्वत पर मंदिर तक जाने के लिये 1744 AD के एक शिलालेख के अनुसार कलकत्ता के श्री मनमोहन दत्त ने अपने खर्च पर सीढ़ियों का निर्माण करवाया था। इससे पहले सूर्य, विष्णु, दुर्गा और कुछ बौद्ध देवताओं की कई मूर्तिया पहाड़ी के आस-पास पाया गया था जो प्राचीन काल के दौरान इलाके में पहले के मंदिरों के अस्तित्व को इंगित करता है। 

Pretshila Hil Gaya | Devotee Pindan ke Liye Chadte Huye
Pretshila Hil Gaya |

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Pretshila Gaya पिंडदान करने से अकाल मृत्यु प्राप्त पूर्वजों तक पिंड सीधे पहुंचते है

Pretshila Gaya वेदी पर अकाल मृत्यु को प्राप्त जातक का श्राद्ध और पिंडदान का विशेष महत्व है. ऐसी मान्यता है कि इस पर्वत पर पिंडदान करने से अकाल मृत्यु को प्राप्त पूर्वजों तक पिंड सीधे पहुंच जाते है, जिनसे उन्हें कष्टदायी योनियों से मुक्ति मिल जाती है. Pretshila Gaya में पिंडदान के बाद ही पितरों को प्रेतात्मा योनि से मुक्ति मिलती है. आत्मा और प्रेतात्मा में विश्वास रखने वाले लोग आष्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से पूरे पितृपक्ष की समाप्ति तक गया में आकर पिंडदान करते हैं. 

Pretshila Hil Gaya | Devotee Pindan ke Liye Chadte Huye
Pretshila Hil Gaya | Devotee Pindan ke Liye Chadte Huye

ब्रह्मकुण्ड – भगवान राम ने अपने पूर्वजों को ‘पिंड’ देने से पहले स्नान किये थे

Pretshila Gaya पर्वत के नीचे एक पक्का सरोवर तथा पास ही तीर्थयात्रियों के लिये एक धर्मशाला है। प्रेतशिला पर्वत के पास सरोवर को  ब्रह्मकुण्ड कहते हैं। जिसमें यह माना जाता है कि भगवान राम ने अपने पूर्वजों को ‘पिंड’ देने से पहले स्नान किये थे. प्रेतशीला तक रामशिला से होकर आने के लिए पक्की सड़क है। ब्रह्मकुण्ड के पास एक-दो मंदिर है जहाँ हमेशा श्रद्धालुओं का भीड़ लगा होता है।

Pretshila Hil Gaya | Barahma Kund | Lord Ram Take Bath Here
Pretshila Hil Gaya | Barahma Kund | Lord Ram Take Bath Here

प्रेतशिला 876 फीट ऊंचा पुराने परतदार पर्वत पर निर्मित है

ब्रह्मकुण्ड से लगभग 400 सीढ़ी चढ़कर प्रेतशीला पर्वत के ऊपर पहुंचते है। प्रेतशीला पर्वत के ऊपर एक मंदिर है जिसमें आंगन तथा बरामदे है। पंचतीर्थ वेदी गया तीर्थ के उत्तर एवं दक्षिण में भी है. उत्तर के पंचतीर्थ में प्रेतशिला, ब्रह्मकुंड, रामशिला, रामकुंड और कागबलि की गणना की जाती है. प्रेतशिला 876 फीट ऊंचा पुराने परतदार पर्वत पर निर्मित है.

Pretshila Hil Gaya | Offering Pinddan Near Barahama Kund
Pretshila Hil Gaya | Offering Pinddan Near Barahama Kund

प्रेतशिला पर्वत पर ब्रह्मा के अंगूठे से खींची गई दो रेखाएं आज भी देखी जा सकती हैं

किवंदतियों के मुताबिक, इस पर्वत पर श्रीराम, लक्ष्मण एवं सीता भी पहुंचकर अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध किया था. कहा जाता है कि प्रेतशिला पर्वत पर ब्रह्मा के अंगूठे से खींची गई दो रेखाएं आज भी देखी जा सकती हैं.

Pretshila वेदी तक पहुंचने के लिए यहां पालकी की व्यवस्था भी है

गया शहर से लगभग आठ किलोमीटर दूर प्रेतशिला पर्वत है। प्रेतशिला पर्वत के ऊपर मंदिर में दर्शन करने के लिये 876 फीट उंचे प्रेतशिला पहाड़ी के शिखर तक जाना पड़ता है. सभी श्रद्धालु पिंडदान करने वाले यहां पहुंचते हैं, परंतु शारीरिक रूप से कमजोर लोगों को इतनी ऊंचाई पर वेदी के होने के कारण वहां तक पहुंचना मुश्किल होता है. उस वेदी तक पहुंचने के लिए यहां पालकी की व्यवस्था भी है, जिस पर सवार होकर शारीरिक रूप से कमजोर लोग यहां तक पहुंचते हैं.

सदस्य तक पिंड सीधे उन्हीं तक जाता है तथा उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है

Pretshila वेदी के पास विष्णु भगवान के चरण के निशान हैं तथा इस वेदी के पास पत्थरों में दरार है. मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से अकाल मृत्यु को प्राप्त पूर्वजों या परिवार का कोई सदस्य तक पिंड सीधे उन्हीं तक जाता है तथा उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है.

पूर्वज जो मृत्यु के बाद प्रेतयोनि में प्रवेश कर जाते हैं

सभी वेदियों पर तिल, गुड़, जौ आदि से पिंडदान दिया जाता है, परंतु Pretshila Gaya वेदी के पास पिंड तिल मिश्रित सत्तु छिंटा (उड़ाया) जाता है. पूर्वज जो मृत्यु के बाद प्रेतयोनि में प्रवेश कर जाते हैं तथा अपने ही घर में लोगों को तंग करने लगते हैं, उनका यहां पिंडदान हो जाने से उन्हें शांति मिल जाती है और वे मोक्ष को प्राप्त कर लेते हैं.

Pretshila Hil Gaya | Offering Pinddan of Sattu
Pretshila Hil Gaya | Offering Pinddan of Sattu

Pretshila में पिंडदान के पूर्व ब्रह्मकुंड में स्नान-तर्पण करना होता है

पहले प्रेतशिला ( Pretshila Gaya ) का नाम प्रेतपर्वत हुआ करता था, परंतु भगवान राम के यहां आकर पिंडदान करने के बाद इस स्थान का नाम प्रेतशिला हुआ. Pretshila में पिंडदान के पूर्व ब्रह्मकुंड में स्नान-तर्पण करना होता है. ब्रह्मकुंड के बारे में कहा जाता है कि इसका प्रथम संस्कार भगवान ब्रह्मा जी द्वारा किया गया था.

परंतु सनातन परंपरा के मुताबिक पिंडदान आवश्यक है

मरने के बाद कौन कहां जाता है यह गूढ़ रहस्य है, परंतु सनातन परंपरा के मुताबिक पिंडदान आवश्यक है, जिसका पालन करना हिन्दुओं के लिये बहुत जरुरी होता है. पिंडदान से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.

एक किवदन्ति के अनुसार एक कोस क्षेत्र गया-सिर माना जाता है, ढाई कोस-तक गया है और पाँच कोस तक का  गया-क्षेत्र है। इसी के मध्य में गया के सारे तीर्थस्थल आ जाते है।

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