रामशिला पहाड़ के तलहट्टी में दुर्लभ स्फटिक (Quartz)शिवलिंग
Ramshila Hill Gaya Bihar
गया शहर चारों ओर पहाड़ से घिरा है. उसी पहाड़ के बीच में गया शहर के उतर में एक पहाड़ है, रामशिला. यह पहाड़ धार्मिक रूप से काफी पुराना है. श्रीराम के आने के पूर्व इस पहाड़ का नाम प्रेतशिला था, जो बाद में रामशिला पहाड़ के नाम से जाने लगा हैं. विष्णुपद मंदिर से लगभग 8 किमी. उतर फल्गु नदी के किनारे रामशिला पहाड़ी है. पहाड़ी के नीचे रामकुण्ड नामक सरोवर है. सरोवर के दक्षिण एक शिव मंदिर है. रामशिला में 20 सीढ़ी उपर एक श्रीराम मंदिर है. इसके जगमोहन में चरण- चिन्ह बना है. मंदिर के दक्षिण एक बरामदे में दो -तीन मूर्तियां है.
स्फटिक शिवलिंग के अंदर नाग की आकृति काफी रहस्यमयी और विस्मयकारी है
Ramshila Hill Gaya Bihar
गया धाम के रामशिला पर्वत के ठीक नीचे अवस्थित इस मंदिर में करीब एक फीट ऊंचाई और इतना ही वृत्ताकार शिवलिंग स्थापित है जो काफी दुर्लभ है. स्फटिक शिवलिंग के अंदर नाग की आकृति अभी तक रहस्य और विस्मयकारी बनी हुई है. रामशिला पहाड़ी के तलहटी में बने मंदिर में भगवान श्री गणेश जी के मूंगा की पांच फीट उंचा भव्य प्रतिमा है. यह बहुत ही दुर्लभ मूर्ति है और भारत वर्ष में बहुत ही कम देखने को मिलता है और बहुत ही कीमती है. स्फटिक या क्वार्ट्ज (Quartz) एक खनिज है। यह रेत एवं ग्रेनाइट का मुख्य घटक है। पृथ्वी के महाद्वीपीय भू-पर्पटी (क्रस्ट) पर क्वार्ट्ज दूसरा सर्वाधिक पाया जाने वाला खनिज है.
Ramshila Hill Gaya वेदी पर पिता राजा दशरथ को पिंडदान किये थे
अपने पिता दशरथ जी की मृत्यु के बाद भगवान राम ने फल्गु तट पर पिण्डदान किये थे और उसके बाद यहाँ आ कर रामशिला मंदिर व पहाड़ के ठीक सामने सड़क के पार रामकुंड में भगवान राम ने स्नान कर रामशिला वेदी पर पिता राजा दशरथ को पिंड दिया था. यहां पिंडदान करने से पितृ सीधे स्वर्गलोक जाते हैं. रामकुंड में पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिलता है. भगवन राम रामशिला पहाड़ के शिखर पर ऋणमोचन-पापमोचन शिवलिंग की स्थापना की. इसे भी काफी सशक्त शैव केन्द्र के रूप में माना जाता है.
तभी Ramshila Hill का नामकरण रामशिला कर दिया गया
भगवान राम ने लक्ष्मण और सीता के साथ गया धाम के उत्तरी सिरे पर अवस्थित पर्वत के शिखर पर विश्राम किया था. शिखर पर उन्होंने रामेश्वर / पातालेश्वर महादेव शिवलिंग की स्थापना और पूजन किया. तभी इस पर्वत का नामकरण रामशिला कर दिया गया. रामशिला पहाड़ के उपर उसके आस पास बहुत पुराने कई मूर्ति स्थापित है और उसमें कुछ नए भी है. पहाड़ के शिखर पर मंदिर को रामेश्वर या पातालगंगा शिव मंदिर कहते है. यह सन १०४१ में मुख्यतः बना है. उसके बाद आने वाले समय में उस मंदिर में पुनरुदार और मरम्मत कई बार हुआ है.
पिंडदानी अपने पूर्वज के लिये पिंडदान (PIND DAN) करते है
Ramshila Hill पर स्थित मंदिर में जाने के लिए चढ़ने वाला सीढी और पहाड़ पर स्थापित मुख्य मंदिर के ठीक सामने बैठने वाला स्थान को कलकत्ता के निवासी श्री कृष्णा बासु ने सन १८११ में बनाया था. जहाँ पर आज के समय में भी बैठ कर पिंडदानी लोग अपने पूर्वज के पिंड दान करते है.
यहां पूजा-अर्चना करने से काल सर्प और असामयिक मृत्यु का भय दूर हो जाता है
रामशिला पहाड़ पर पातालेश्वर महादेव मंदिर से गया शहर का सुन्दर एवं मनोरम दृश्य दिखाई पड़ता है. रामशिला पहाड़ के तलहट्टी में स्थापित मंदिर जहां देश का तीसरा स्फटिक शिवलिंग विराजमान है. पहला स्फटिक शिवलिंग रामेश्वरम में, दूसरा जम्मू के रघुनाथ मंदिर और तीसरा रामशिला पहाड़ की तलहटी में स्थित मंदिर में है. इस स्फटिक शिवलिंग की खास बात यह है कि इसके पास आरती दिखाने पर माता पार्वती व भगवान शिव के दिव्य नेत्रों का भक्त दर्शन करते हैं, साथ ही वासुकीनाथ भी अपने अलौकिक रूप में नजर आते है. यहां पूजा-अर्चना करने से काल सर्प और असामयिक मृत्यु का भय दूर हो जाता है.
रामशिला पर्वत पर पातालेश्वर शिव और राम लक्ष्मण मंदिर दर्शनीय है
इस शिव मंदिर का निर्माण टिकारी महाराज गोपाल शरण सिंह के पिता बाबु अम्बिका शरण सिंह ने टिकारी राज के Court of Wards के समय, गया शहर के पहसी में प्रवास के दौरान, सन १८८६ इ. वी. में इसका निर्माण कराया था. रामशिला एक प्रसिद्ध धर्म तीर्थ है जहाँ से संपूर्ण गया क्षेत्र का दृश्य बड़ा ही मनोरम दिखता है. रामशिला पहाड़ की ऊंचाई ७१५ फीट है. टिकारी राजा द्वारा पुनरुदार और मरम्मत करवाई गई सीढियों से युक्त इस पर्वत पर पातालेश्वर शिव और राम लक्ष्मण मंदिर दर्शनीय है.
गया जंक्शन से आने वाले श्रद्धालु इस स्थल पर ऑटो के जरिए जा सकते है
गया-पटना सड़क के सटे इस मंदिर में जाने के लिए गया जंक्शन से आने वाले श्रद्धालु इस स्थल पर ऑटो के जरिए टावर चौक, किरानी घाट, पंचायती अखाड़ा होते हुए रामशिला पर्वत के पास पहुंच सकते हैं. इसके अलावा स्टेशन से बागेश्वरी मंदिर, छोटकी नवादा होते हुए भी इस स्थल पर पहुंचा जा सकता है.
शीतलता का प्रतीक है स्फटिक शिवलिंग, सावन में लगती है भीड़
रामशिला स्थित शिव मंदिर में स्थापित स्फटिक शिवलिंग शीतलता का प्रतीक है. इस शिवलिंग पर दूध चढ़ाने से मन को चंद्रमा के समान शीतलता मिलती है. इसके अलावा बाबा भोलनाथ भक्तों के हर प्रकार के कष्ट को दूर कर देते हैं. श्रावण के महीने में हर शिवालय में भक्तों की भीड़ होती है लेकिन गया के उत्तरी क्षेत्र के रामशिला पहाड़ की तलहटी में स्थापित स्फटिक के शिवलिंग की पूजा-अर्चना का खास महत्व है. यहां पूरे साल भक्तों की भीड़ लगी रहती है.
पूजा-अर्चना करने से मन व शरीर दोनों की कामना पूरी होती है
स्फटिक भी एक तरह का रत्न है जो शुक्र ग्रह के लिए है. ‘शुक्र’ ‘कामदेव’ माने जाते हैं. जिनकी पूजा-अर्चना करने से मन व शरीर दोनों की कामना पूरी होती है. कोई मनुष्य यदि स्फटिक के शिवलिंग की पूजा, जलाभिषेक तथा आराधना समर्पित भाव से करे तो शुक्र ग्रह का संताप मिट जाता है. सावन में शिव की विशेष पूजा अर्चना का महत्व है. इसको लेकर इस मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ होती है.
अतिप्राचीन काल से क्वार्ट्ज आभूषण बनाने के काम में लिए जाते हैं
स्फटिक या क्वार्ट्ज (Quartz) एक खनिज है। यह रेत एवं ग्रेनाइट का मुख्य घटक है। पृथ्वी के महाद्वीपीय भू-पर्पटी (क्रस्ट) पर क्वार्ट्ज दूसरा सर्वाधिक पाया जाने वाला खनिज है (पहला, फेल्सपार है)। यह SiO4 के सिलिकन-आक्सीजन चतुष्फलकी से बना होता है जिसमें प्रत्येक आक्सीजन दो चतुष्फलकियों में साझा होता है।क्वार्टज अनेकों प्रकार के होते हैं। इनमें से कई अर्ध-मूल्यवान (semi-precious) रत्न हैं। विशेषतः यूरोप और मध्यपूर्व में तरह-तरह के क्वार्ट्ज अतिप्राचीन काल से आभूषण बनाने के काम में लिए जाते रहे हैं। क्वार्ट्ज शब्द (‘quartz’) जर्मन शब्द ‘Quarz’ से निकला है जिसका अर्थ ‘कठोर’ होता है।
स्फटिक शिवलिंग सुख-शांति बनाए रखता है
स्फटिक शिवलिंग सुख-शांति बनाए रखता है और आपको जीवन में होने वाले बुरे प्रभावों से बचाता है
जो भी भक्त महाशिवरात्रि के दिन सच्चे मन से स्फटिक शिवलिंग की पूजा करता है उसकी भगवान शिव स्वयं रक्षा करते हैं.
स्फटिक शिवलिंग की ऊर्जा में इतनी शक्ति होती है कि मात्र इसकी पूजा करने से आपके मन शुद्ध हो जाता है.
जो भी व्यक्ति पूजन स्थल में स्फटिक शिवलिंग की पूजा करता है उसे जीवन में कभी भी धन की कमी नहीं होती हैं.
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