मंगल ग्रह से शेरघाटी में एक उल्कापिंड गिरा था, जिसे अभी भी लंदन के संग्रहालय में संरक्षित रखा गया है।

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जिसे अंग्रेजो ने इसे यहाँ से ब्रिटेन भेज दिया गया था। अंग्रेजों ने शेरगोट्टी उल्कापिंड ( Shergotty meteorite ) का नाम दिया था। जिसे आज हमलोग शेरघाटी उल्कापिंड के नाम से भी जाना जाता है। शेरगोट्टी उल्कापिंड, शेरगोटाइट मंगल उल्कापिंड परिवार का पहला उदाहरण है।

रॉयल डिस्ट्रिक्ट गजेटियर के अनुसार इसका वजन लगभग पांच किलो या (11 पाउंड) का मार्टीन उल्कापात था ।

क्या होता है, उल्कापिंड

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शेरगोटी कुछ समय के लिए एकमात्र बेसाल्टिक मार्टियन उल्कापिंड था और जल्द ही मार्टियन की बढ़ती संख्या के लिए प्रोटोटाइप बन गया। यह और अन्य मंगल ग्रह के उल्कापिंडों ने मंगल ग्रह पर पानी की उपस्थिति के लिए पर्याप्त सबूत प्रदान किए हैं। 

क्या है वैज्ञानिक महत्व…

– रेडियोमेट्रिक तिथि के अनुसार इसे लगभग 4.1 अरब साल पुराना माना गया है।

– लोगों को इसकी जानकारी नहीं रहने से लंदन से लाने की पहल नहीं हो रही है।

कौड्रयूल है पिंड

– इसपर वैज्ञानिकों ने शोध भी किए। इसे कौंड्राइट पिंड माना गया है, जिसका मुख्य लक्षण है, कुछ विशिष्ट वृत्ताकार दाने, जिन्हें कौंड्रयूल कहते हैं।

– यह सिलिकेट खनिज से बने पत्थर सदृश है। इसे ज्वालामुखी के लावे से बना माना जाता है। नासा के जर्नल में भी इसपर शोध प्रकाशित है। इसके अलावा अन्य जगहों पर भी चर्चा है।

और क्या है महत्व

– वैज्ञानिकदृष्टि से इनका महत्व बहुत अधिक है क्योंकि एक तो ये अति दुर्लभ होते हैं, दूसरे आकाश में विचरते हुए विभिन्न ग्रहों इत्यादि के संगठन और संरचना, के ज्ञान के प्रत्यक्ष स्रोत केवल ये ही पिंड हैं।

– इनके अध्ययन से हमें यह भी बोध होता है कि भूमंडलीय वातावरण में आकाश से आए हुए पदार्थ पर क्या-क्या प्रतिक्रियाएं होती हैं। इस प्रकार ये पिंड ब्रह्माण्डविद्या और भूविज्ञान के बीच संपर्क स्थापित करते हैं।

भारत में गिरे अन्य उल्कापिंड

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